"चरखा" देखते ही कुछ क्षण मैं स्तिमित हो गया था। मन में आदर एवम कृतज्ञता के भाव एक साथ जाग उठे। मैं निजी कार्य हेतू मुंबई गया था, जिनसे मिलना था उनसे मिलने के लिये बहुत समय था। इतना वक्त कही बिताये इसलिये चर्चगेट स्थानक के बाजू में बने एक उद्यान में गया और अंदर जाते ही सबसे पहले कोई मुझे खीच ले गया तो 'चरखा'! ऊस उद्यान के प्रवेशद्वार के सम्मुख चरखे की बडी प्रतिकृती बनी हुई थी और "भारतियोंके लिये स्वतंत्रता का प्रतीक" ऐसेही मतितार्थ का शिलालेख अंग्रेजी में उसके नीचे अंकित किया गया था।
हम सभी जानते हैं की महात्मा गांधीजी ने चरखे को देश के स्वाधीनता आंदोलन का प्रतीक बनाया था। और यह केवल स्वाधीनता का प्रतीक नही अपितु हमारी आत्मसम्मान का प्रतीक बन गया था। गांधीजी ने स्वदेशी, स्वावलंबन के माध्यम से स्वतंत्रता को प्राप्त करने का जो मन्त्र दिया था ऊस मंत्र को यथार्थ बनाने का यंत्र चरखा था।
मेरी दृष्टि में चरखा 'राष्ट्रचक्र' हैं।
आज हम स्वतन्त्र है तथा राष्ट्र में लोकतंत्र है। डाँ बाबासाहब आंबेडकरजी ने हमारे राष्ट्र को बहुत ही अनमोल भेट दी- ' भारतीय संविधान'। २६ नवम्बर १९४९ को संविधान सभा द्वारा स्वीकृत "भारतीय संविधान" २६ जनवरी १९५० से हमारे राष्ट्र में लागू हुआ। इसी उपलक्ष में हम हर वर्ष गणतन्त्र दिन मनाते है| और गणतंत्र का अर्थ होता है भारतियों ने भारतियों के लिये भारतियों के द्वारा चलाई जा रही सरकार। ऐसी सरकार जो हम लोकतांत्रिक पध्दतिसे निर्वाचन के माध्यम से चुनते है।
किंतु केवल भारतीय सरकार चुनना यही तक हम सीमित रहेंगे? क्या भारतीय व्यक्तियों ने भारतीय उत्पादों का प्रयोग करना यह राष्ट्रहित के लिये आवश्यक नही? क्या हम भारतियों ने हमारे राष्ट्र के युवाओं से नये उद्यमियों को उत्तेजन देना आवश्यक नही? क्या भारतीय व्यक्ति ने भारतीयता को जीवन के हर क्षेत्र में उतारना आवश्यक नही? भारतीय व्यक्तियों ने भारत में स्थापित उद्यमों को उत्तेजना देना और यहा निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करना यह राष्ट्र के एकता, अखंडता, एवम सार्वभौमत्व के लिये आवश्यक नही?
एक विदेशी कंपनी ने यहा आकर हमे ऊस राष्ट्र का गुलाम बनाया जिस राष्ट्र की वो कंपनी थी और उसके विरोध मे हमे स्वदेशी का प्रयोग करना पडा। क्या हम फिर से वो काला इतिहास पुनरावृत्त होने की राह देख रहे है ताकि फिर तब जाके हम फिर स्वदेशी का गुणगान गायेंगे; फिर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास करेंगे।
चरखा अर्थात चक्र! चक्र उद्योग का, प्रगति का प्रतीक है। हमारे राष्ट्र के मानबिंदू के रूप में हमने अशोकचक्र को स्थापित किया है; हमारे तिरंगे पर अंकित किया है। अगर हमे अपने लोकतंत्र को जीवित रखना है, अपनी स्वतंत्रता को अक्षर करना है, जगत में स्वाभिमान से सर उठा के चलना है तो हमे अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। अर्थव्यवस्था को मजबूत करने हेतू हमे हमारे राष्ट्र के उद्यमियों को उत्तेजन देना होगा। उनके द्वारा निर्मित उत्पादों का प्रयोग करना होगा। तब जाके उद्योग का चक्र तेज गति से दौडेगा। हमारे सम्माननिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने नये उद्यम एवं नये उद्यमियोंको को उत्तेजना हेतु "स्टँड अप इंडिया-स्टार्ट अप इंडिया" की पहल की है। किंतु यह तभी सफल होगा जब हम भारतीय हमारे राष्ट्र के उद्यमियों द्वारा चलाये जा रहे उद्योगों में निर्मित उत्पादोंका के प्रयोग को प्राथमिकता देनी होंगी।
चक्र श्रमजीवियों का प्रतीक है। हमारे राष्ट्र के पालक किसान भी बैलगाडियों के ( आज कल ट्रॅक्टर) चक्र का सहयोग लेकर ही हमारे लिये अन्न उपजाते है। उनकी खस्ता हालत को सुधारने का दायित्व हम सभी भारतियों का है। लोकतंत्र के लिये राष्ट्रहित के लिये किसान का जीवन उन्नत करना हमारा आद्य कर्तव्य है।
चक्र हमे एक और याद दिलाता है, 'योगेश्वर श्रीकृष्ण'
श्रीकृष्ण ने एक और जहा भगवदगीता के माध्यम से कर्मयोग का सिध्दांत रखा वही दुसरी और सुदर्शन चक्र से अनीती, अन्याय से भरे दुष्टों का विनाश किया। आज यही सत्कार्य हमारे राष्ट्र के सेना के जवान एवं हमारी पोलीस करती है। इस कार्य में गुप्त रूप से कार्यरत गुप्तचरों का भी अनन्यसाधारण महत्व है क्योंकि उनकी कभी जगत को पहचान नही होती।
आईये इस २६ जनवरी को गणतंत्र दिन का उल्हास मनाते वक्त इन सभी को विनम्र अभिवादन करे।
केवल १५ अगस्त, २६ जनवरी ऐसे दिन ही नही बल्कि वर्ष के हर दिन, हर क्षण हमे इन राष्टृपुरुषोंका स्मरण हो। उनके त्याग, तपस्या के प्रति हम सदैव कृतकृत्य हो और सदा हम गर्व से कहते रहे.." वंदे मातरम", "भारत माता की जय"
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"कुछ शस्त्र लिये लडे, कुछ शास्त्र लिये लडे..
सभी राष्ट्रपुरुष बडे, सबके अपने मार्ग बडे
भेद ना करना किसी में और ना आपस में लडे..
सब एक ही माँ के पुत्र, माँ भारती के लिये लडे.!"
मंगलवार, 26 जनवरी 2016
राष्ट्रचक्र
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